"...चित्रों से हमारा पुराना रिश्ता है. बाबा आदम के जमाने का... क्या जाने उससे भी पुराना हो...! इस ब्लॉग में भी रंगों की आकारों की ही भगदड़ होगी. तैयार रहिएगा. ... नहीं-नहीं डरिये मत! भगदड़ तो होगी लेकिन हॉल बहुत बड़ा है. आदिमानव के वक्त से आजतक की लम्बाई है इसकी. कोई दबा कुचला नहीं जाएगा... आप भी कहीं खड़े हो जाना जी. और जी करे तो खुद भी भगदड़ में शामिल हो जाना... सोचा तो अभी यही है कि खूब मजा आऐगा ...देखिए आगे आगे होता है क्या..."
Wednesday, June 8, 2011
एक अपील भरा गिफ्ट
बहुत खास दोस्त मोहन ने कल कुछ रंगों और ब्रश को नीली पन्नी में लपेट कर मुझे बर्थडे गिफ्ट के बतौर दिया.... एक कविता सा पत्र भी साथ में था-
लौट आओ रंगों के बीच दुबारा
वे अब उदास हो चले हैं
वे फिर से छूना चाहते हैं तुम्हारी अँगुलियों को.
फिर से होना चाहते हैं
जीवित , जीवंत
और खेलना चाहते हैं.
धमाचोकडी मचाना चाहते हैं.
ये बच्चे अब बहुत उदास हो चले हैं.
लौट आओ अब
इनके बीच.
-सोचता हूँ कुछ कैनवास खाली पड़े हैं घर पर. इस दोस्त ने जगाया है मुझे गहरी नींद से. अब अनगढ़ ही सही कुछ चित्र बनाऊ.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment